धनुर्धर सी एक नज़र से
तू चलता जा तू तेज़ चल
तूफ़ा रोके तेरे पाँव
कड़ी धूप मिले न छाव
पत्थर कांटे भरी हो राहें
बिखर रही हो तेरी साँसे
सीधा चल न ढूँढ विकल्प
तू चलता जा तू तेज़ चल
तू चलता जा तू तेज़ चल
हो उठती हुई समंदर की लहर
चल पथिक न थम, कर हिम्मत, तू प्रबल
द्वारा
स्नील शेखर
छूता जा तू लक्ष्य अविरल
रोके से भी न रुकेतू चलता जा तू तेज़ चल
तूफ़ा रोके तेरे पाँव
कड़ी धूप मिले न छाव
पत्थर कांटे भरी हो राहें
बिखर रही हो तेरी साँसे
सीधा चल न ढूँढ विकल्प
तू चलता जा तू तेज़ चल
अंत रहा तुझे ललकार
प्रतीक्षा करे है तेरी काल
खड़ा द्वार हो यम विकराल
तू भीष्म तू सवित्रि तू अटल तू अचलतू चलता जा तू तेज़ चल
हो समक्ष दुर्गम पर्वत का शिखर
हो गहन जंगल का सफ़र हो उठती हुई समंदर की लहर
चल पथिक न थम, कर हिम्मत, तू प्रबल
तू चलता जा तू तेज़ चल
द्वारा
स्नील शेखर
7 टिप्पणियां:
प्रेरणादायी सुंदर रचना !!
प्रेरणादायी देती सुंदर रचना !!
Your words have immense power to motivate.
protsahan ke liye dhanyavaad.
वाह....
बहुत सुन्दर......
ऊर्जा से भर देने वाली रचना....
सशक्त अभिव्यक्ति...
अनु
Dil se bhi lagaya na usne
Paraya bhi kiya nahin
Ye bhi kaisa rishta hai
Jisme koi rishta nahin
Your close buddy
तेज चलने वाले यूं रुका नहीं करते....
रफ्तार थम क्यों गई.....
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