शुक्रवार, 29 जून 2012

कुछ लिखने को दिल करता है


जब देखता हूँ
टूटे खिलौने से खेलते बचपन को
खून से महगें दूध को तरसते बचपन को
नीले हरे पीले कंचों में  भोली आखों से  रंगीन सपने संजोते देखता हूँ
कुछ लिखने को दिल करता है




जब देखता हूँ
बूढी माँ को काली धसी नज़रों से  कपडे सीते
पुरानी  टूटी गुल्लक में रूपया रुपया जोड़ते
फटी साडी से सूखे कलेजे छुपाकर 
जब उसी साड़ी  के छेद से  एक उजली किरण निकलते देखता हूँ
कुछ लिखने को दिल करता है





जब देखता हूँ
खांसते बाप को बिस्तर पर करवट बदलते
अपने कुरते से पूरानी फोटो की  धूल उड़ाते
घुप अधेरी चार  दीवारी से घंटो बतियाते
जब अकेले अंतिम सफ़र पर सीना ताने निकलते देखता हूँ
कुछ लिखने को दिल करता है




द्वारा स्नील

गुरुवार, 28 जून 2012

सपनो की पुडिया





बगल में छुपा कर सपनो की पुडिया
मंजिल नहीं मिलती
रुपयों की दूकान पर सासों को गिरवी रख
जिंदगी नहीं मिलती

प्रेमी चातक के गगन घूरने से
प्रेम की बारिश नहीं होती
बहा आखों से गर्म नमकीन पानी हिमालय के सिने की
बर्फ नहीं पिघलती


नींद भरी आँखों से तारे गिन
काली रात नहीं ढलती
गंगाधर विश्राम कर मानव
मुक्ति नहीं मिलती

गिरा रंग की पपड़ियाँ
इमारतें हसीं नहीं बनती
काली जबाँ अजाँ पढने से
उसकी रहमत नहीं मिलती


द्वारा स्नील