रविवार, 16 सितंबर 2012

तू तेज़ चल !

धनुर्धर सी एक नज़र से
छूता जा तू लक्ष्य अविरल
रोके से भी न रुके
तू चलता जा तू तेज़ चल
तूफ़ा रोके तेरे पाँव
कड़ी धूप मिले न छाव
पत्थर कांटे भरी हो राहें
बिखर रही हो तेरी साँसे
सीधा चल न ढूँढ विकल्प
तू चलता जा तू तेज़ चल

अंत रहा तुझे ललकार
प्रतीक्षा करे है तेरी काल
खड़ा द्वार हो यम विकराल
तू भीष्म तू सवित्रि  तू अटल तू अचल
तू चलता जा तू तेज़ चल
हो समक्ष दुर्गम पर्वत का शिखर   
हो गहन जंगल का सफ़र
हो उठती हुई समंदर की लहर
चल पथिक न थम, कर हिम्मत, तू प्रबल
तू चलता जा तू तेज़ चल



द्वारा
स्नील शेखर

7 टिप्‍पणियां:

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

प्रेरणादायी सुंदर रचना !!

Maheshwari kaneri ने कहा…

प्रेरणादायी देती सुंदर रचना !!

yoginiruns ने कहा…

Your words have immense power to motivate.

Sniel Shekhar ने कहा…

protsahan ke liye dhanyavaad.

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह....
बहुत सुन्दर......
ऊर्जा से भर देने वाली रचना....
सशक्त अभिव्यक्ति...

अनु

बेनामी ने कहा…

Dil se bhi lagaya na usne
Paraya bhi kiya nahin
Ye bhi kaisa rishta hai
Jisme koi rishta nahin

Your close buddy

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

तेज चलने वाले यूं रुका नहीं करते....
रफ्तार थम क्यों गई.....