रविवार, 29 जुलाई 2012

सीता की पीड़ा


तुम सीता की पीड़ा क्या जानो
तुम राम नाम में डूबे हो
घर  छोड़ पती के संग चली
हर वनवास खुशी से सहती वो
डिगा  पिनाका बनी सबल
फिर घरों में घुटती क्यों 
सिद्ध नेक अग्नि परीक्षा कर
क्यों  ससुराल में जलती वो
दुर्गा बन असुर संघार किया
गर सडको पर तिल तिल  मरती वो
तू प्रीति प्रेम का ढोंग न कर
बिन  मेरे क्या जीवन पायेगा 
जब तेरे राम ही  दोषी हैं
तू कौन शरण में जाएगा
तुम सीता की पीड़ा क्या जानो
तुम राम नाम में डूबे हो


द्वारा
स्नील शेखर

बुधवार, 11 जुलाई 2012

मन मंथन


जीवन है अस्तव्यस्त हम सो ना पाए
मन है व्याकुल, नेत्र नम खुल के रो न पाए
विचार हैं अनेक परन्तु अर्थ संकुचित
नैतिक पतन और मस्तिष्क विचलित
आशाओं का ढेर आसन, भय आत्मसम्मान
मांगें हैं प्रछन्न कुटुंब का अभिमान
युवा कर कर विचार, समस्या जटिल किन्तु हल न पाए
जीवन है अस्तव्यस्त हम सो ना पाए


हल है सहज सरल किन्तु सहस चाहे
त्याग आम पथ, हट लीक से, नवीन कर
रख विशवास, चल कर आरम्भ बस  दृढ संकल्प चाहे
तू है वीर न थम, कर ले प्रण तू मन मंथन , तुझे  जय पुकारे




द्वारा
स्नील  शेखर