सोमवार, 1 जुलाई 2013

बेपरवाह

लुटने दो अंधेरों को यह कौन से अपने सगे हैं
थोड़ी सी सुबह क्या हुई, फिर झाँकेगे हमारी जिंदगी में
टूटने दो काले दिलों को यह  कौन सा भला सोचते हैं
थोड़ी सी ख़ुशी क्या मिली, फिर सोचेगें तबाही हमारी

रोने दो बेवफ़ा निगाहों  को, यह कौन सी संजीदा हैं
गैर कोई कन्धा क्या मिला, सच्ची मोहब्बत भुला बैठीं
जलने दो खाली  मकानों को यह कौन से घरोंदे  हैं
थोड़ी सी हवा क्या चली, हिला बैठे करीबी रिश्तों को
   














बहकने दो औलादों को, यह कौन सी तुम्हारी हैं,
ज़रा फूटी नादां जवानी क्या , बरसों की परवरिश भुला बैठे
भटकने दो तौकीलौं को, यह जिंदा हैं मज्हबो पर
थोड़ी सी मुश्किलों ने बदल डाला  काफिरों में

मरने दो इनसानो  को, यह कौन से इंसान हैं,    
जब करम की जरूरत थी, फ़रोक्त  आये इंसानियत को
उजड़ने दो शमशानों को यह कौन से सुथरे हैं  
सलामत बेईमानों की हैं लाशें, साथ सुलाते हैं शहीदों  को














भुला दो सभी हकीकतों  को जो दर्द देती हैं,
कशमकश के घेरे से कभी दर्द कम नहीं होगा 
जी लो जिंदगी एक  बार बेपरवाह हो कर
फिर  मौत भी  आये कोई गम नहीं  होगा



द्वारा
स्नील शेखर

 

रविवार, 16 सितंबर 2012

तू तेज़ चल !

धनुर्धर सी एक नज़र से
छूता जा तू लक्ष्य अविरल
रोके से भी न रुके
तू चलता जा तू तेज़ चल
तूफ़ा रोके तेरे पाँव
कड़ी धूप मिले न छाव
पत्थर कांटे भरी हो राहें
बिखर रही हो तेरी साँसे
सीधा चल न ढूँढ विकल्प
तू चलता जा तू तेज़ चल

अंत रहा तुझे ललकार
प्रतीक्षा करे है तेरी काल
खड़ा द्वार हो यम विकराल
तू भीष्म तू सवित्रि  तू अटल तू अचल
तू चलता जा तू तेज़ चल
हो समक्ष दुर्गम पर्वत का शिखर   
हो गहन जंगल का सफ़र
हो उठती हुई समंदर की लहर
चल पथिक न थम, कर हिम्मत, तू प्रबल
तू चलता जा तू तेज़ चल



द्वारा
स्नील शेखर

रविवार, 29 जुलाई 2012

सीता की पीड़ा


तुम सीता की पीड़ा क्या जानो
तुम राम नाम में डूबे हो
घर  छोड़ पती के संग चली
हर वनवास खुशी से सहती वो
डिगा  पिनाका बनी सबल
फिर घरों में घुटती क्यों 
सिद्ध नेक अग्नि परीक्षा कर
क्यों  ससुराल में जलती वो
दुर्गा बन असुर संघार किया
गर सडको पर तिल तिल  मरती वो
तू प्रीति प्रेम का ढोंग न कर
बिन  मेरे क्या जीवन पायेगा 
जब तेरे राम ही  दोषी हैं
तू कौन शरण में जाएगा
तुम सीता की पीड़ा क्या जानो
तुम राम नाम में डूबे हो


द्वारा
स्नील शेखर

बुधवार, 11 जुलाई 2012

मन मंथन


जीवन है अस्तव्यस्त हम सो ना पाए
मन है व्याकुल, नेत्र नम खुल के रो न पाए
विचार हैं अनेक परन्तु अर्थ संकुचित
नैतिक पतन और मस्तिष्क विचलित
आशाओं का ढेर आसन, भय आत्मसम्मान
मांगें हैं प्रछन्न कुटुंब का अभिमान
युवा कर कर विचार, समस्या जटिल किन्तु हल न पाए
जीवन है अस्तव्यस्त हम सो ना पाए


हल है सहज सरल किन्तु सहस चाहे
त्याग आम पथ, हट लीक से, नवीन कर
रख विशवास, चल कर आरम्भ बस  दृढ संकल्प चाहे
तू है वीर न थम, कर ले प्रण तू मन मंथन , तुझे  जय पुकारे




द्वारा
स्नील  शेखर