जब देखता हूँ
टूटे खिलौने से खेलते बचपन को
खून से महगें दूध को तरसते बचपन को
नीले हरे पीले कंचों में भोली आखों से रंगीन सपने संजोते देखता हूँ
कुछ लिखने को दिल करता है
जब देखता हूँ
बूढी माँ को काली धसी नज़रों से कपडे सीते
पुरानी टूटी गुल्लक में रूपया रुपया जोड़ते
फटी साडी से सूखे कलेजे छुपाकर
जब उसी साड़ी के छेद से एक उजली किरण निकलते देखता हूँ
कुछ लिखने को दिल करता है
जब देखता हूँ
खांसते बाप को बिस्तर पर करवट बदलते
अपने कुरते से पूरानी फोटो की धूल उड़ाते
घुप अधेरी चार दीवारी से घंटो बतियाते
जब अकेले अंतिम सफ़र पर सीना ताने निकलते देखता हूँ
कुछ लिखने को दिल करता है
द्वारा स्नील
9 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर भावमयी अभिव्यक्ति....शुभकामनायें !
Dhanyawaad Kailash Ji
waah, bhaavnaon ko bakhoobi piroya hai, sunder rachna
shubhkamnayen
Dhanyawaad Prritiy ji
आपके दिल में करुणा है,टीस है
उसे आप लिख कर अभिव्यक्त करें,तो बहुत
अच्छा लगेगा.
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
भावपूर्ण प्रस्तुति..
भावात्मक प्रस्तुति.बहुत सुन्दर .बधाई .
Dhanyawaad
बहुत बहुत सुन्दर रचना....
कोमल और दिल को छू जाने वाली अभिव्यक्ति....
अनु
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