शुक्रवार, 29 जून 2012

कुछ लिखने को दिल करता है


जब देखता हूँ
टूटे खिलौने से खेलते बचपन को
खून से महगें दूध को तरसते बचपन को
नीले हरे पीले कंचों में  भोली आखों से  रंगीन सपने संजोते देखता हूँ
कुछ लिखने को दिल करता है




जब देखता हूँ
बूढी माँ को काली धसी नज़रों से  कपडे सीते
पुरानी  टूटी गुल्लक में रूपया रुपया जोड़ते
फटी साडी से सूखे कलेजे छुपाकर 
जब उसी साड़ी  के छेद से  एक उजली किरण निकलते देखता हूँ
कुछ लिखने को दिल करता है





जब देखता हूँ
खांसते बाप को बिस्तर पर करवट बदलते
अपने कुरते से पूरानी फोटो की  धूल उड़ाते
घुप अधेरी चार  दीवारी से घंटो बतियाते
जब अकेले अंतिम सफ़र पर सीना ताने निकलते देखता हूँ
कुछ लिखने को दिल करता है




द्वारा स्नील

9 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर भावमयी अभिव्यक्ति....शुभकामनायें !

Sniel Shekhar ने कहा…

Dhanyawaad Kailash Ji

prritiy----sneh ने कहा…

waah, bhaavnaon ko bakhoobi piroya hai, sunder rachna
shubhkamnayen

Sniel Shekhar ने कहा…

Dhanyawaad Prritiy ji

Rakesh Kumar ने कहा…

आपके दिल में करुणा है,टीस है
उसे आप लिख कर अभिव्यक्त करें,तो बहुत
अच्छा लगेगा.

सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.

मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

भावपूर्ण प्रस्तुति..

Shalini kaushik ने कहा…

भावात्मक प्रस्तुति.बहुत सुन्दर .बधाई .

Sniel Shekhar ने कहा…

Dhanyawaad

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर रचना....
कोमल और दिल को छू जाने वाली अभिव्यक्ति....

अनु