जीवन है अस्तव्यस्त हम सो ना पाए
मन है व्याकुल, नेत्र नम खुल के रो न पाए
विचार हैं अनेक परन्तु अर्थ संकुचित
नैतिक पतन और मस्तिष्क विचलित
आशाओं का ढेर आसन, भय आत्मसम्मान
मांगें हैं प्रछन्न कुटुंब का अभिमान
युवा कर कर विचार, समस्या जटिल किन्तु हल न पाए
जीवन है अस्तव्यस्त हम सो ना पाए
हल है सहज सरल किन्तु सहस चाहे
त्याग आम पथ, हट लीक से, नवीन करहल है सहज सरल किन्तु सहस चाहे
रख विशवास, चल कर आरम्भ बस दृढ संकल्प चाहे
तू है वीर न थम, कर ले प्रण तू मन मंथन , तुझे जय पुकारे
द्वारा
स्नील शेखर
14 टिप्पणियां:
सार्थक प्रस्तुति .आभार ऐसा हादसा कभी न हो
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
बहुत खूब....
बहुत सुन्दर....
बढते रहें....
तुझे जय पुकारे....
अनु
कृपया टिप्पणी में वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें....पाठकों को सुविधा रहेगी टिप्पणी करने में.
Thanks Anu.. :)
Thanks everybody for the valuable feedback..
समस्या जटिल किन्तु हल न पाए
जीवन है अस्तव्यस्त हम सो ना पाए
achha laga rachan se ru b ru hona
shubhkamnayen
आत्ममंथन जरुरी है ..
सुंदर प्रस्तुति ..
सुंदर भाव !
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन,
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने की अनुकम्पा करें, आभारी होऊंगा .
वाह ...ओजस्वी भाव और प्रेरणादायी पंक्तियाँ.... अति सुंदर
Thanks Monica
हौसले को संबल देती रचना
बहुत सुन्दर भाव खुबसूरत पंक्तियाँ..मेरे ब्लाग में आने के लिए आभार..
Thanks ever so much Rashmi/Maheshwari
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