रविवार, 16 सितंबर 2012

तू तेज़ चल !

धनुर्धर सी एक नज़र से
छूता जा तू लक्ष्य अविरल
रोके से भी न रुके
तू चलता जा तू तेज़ चल
तूफ़ा रोके तेरे पाँव
कड़ी धूप मिले न छाव
पत्थर कांटे भरी हो राहें
बिखर रही हो तेरी साँसे
सीधा चल न ढूँढ विकल्प
तू चलता जा तू तेज़ चल

अंत रहा तुझे ललकार
प्रतीक्षा करे है तेरी काल
खड़ा द्वार हो यम विकराल
तू भीष्म तू सवित्रि  तू अटल तू अचल
तू चलता जा तू तेज़ चल
हो समक्ष दुर्गम पर्वत का शिखर   
हो गहन जंगल का सफ़र
हो उठती हुई समंदर की लहर
चल पथिक न थम, कर हिम्मत, तू प्रबल
तू चलता जा तू तेज़ चल



द्वारा
स्नील शेखर