बुधवार, 11 जुलाई 2012

मन मंथन


जीवन है अस्तव्यस्त हम सो ना पाए
मन है व्याकुल, नेत्र नम खुल के रो न पाए
विचार हैं अनेक परन्तु अर्थ संकुचित
नैतिक पतन और मस्तिष्क विचलित
आशाओं का ढेर आसन, भय आत्मसम्मान
मांगें हैं प्रछन्न कुटुंब का अभिमान
युवा कर कर विचार, समस्या जटिल किन्तु हल न पाए
जीवन है अस्तव्यस्त हम सो ना पाए


हल है सहज सरल किन्तु सहस चाहे
त्याग आम पथ, हट लीक से, नवीन कर
रख विशवास, चल कर आरम्भ बस  दृढ संकल्प चाहे
तू है वीर न थम, कर ले प्रण तू मन मंथन , तुझे  जय पुकारे




द्वारा
स्नील  शेखर        

14 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति .आभार ऐसा हादसा कभी न हो

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब....

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर....
बढते रहें....
तुझे जय पुकारे....

अनु
कृपया टिप्पणी में वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें....पाठकों को सुविधा रहेगी टिप्पणी करने में.

Sniel Shekhar ने कहा…

Thanks Anu.. :)

Sniel Shekhar ने कहा…

Thanks everybody for the valuable feedback..

prritiy----sneh ने कहा…

समस्या जटिल किन्तु हल न पाए
जीवन है अस्तव्यस्त हम सो ना पाए

achha laga rachan se ru b ru hona

shubhkamnayen

शिवनाथ कुमार ने कहा…

आत्ममंथन जरुरी है ..
सुंदर प्रस्तुति ..
सुंदर भाव !

S.N SHUKLA ने कहा…

बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन,

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने की अनुकम्पा करें, आभारी होऊंगा .

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

वाह ...ओजस्वी भाव और प्रेरणादायी पंक्तियाँ.... अति सुंदर

Sniel Shekhar ने कहा…

Thanks Monica

रश्मि प्रभा... ने कहा…

हौसले को संबल देती रचना

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव खुबसूरत पंक्तियाँ..मेरे ब्लाग में आने के लिए आभार..

Sniel Shekhar ने कहा…

Thanks ever so much Rashmi/Maheshwari