लुटने दो अंधेरों को यह कौन से अपने सगे हैं
थोड़ी सी सुबह क्या हुई, फिर झाँकेगे हमारी जिंदगी में
टूटने दो काले दिलों को यह कौन सा भला सोचते हैं
थोड़ी सी ख़ुशी क्या मिली, फिर सोचेगें तबाही हमारी
रोने दो बेवफ़ा निगाहों को, यह कौन सी संजीदा हैं
गैर कोई कन्धा क्या मिला, सच्ची मोहब्बत भुला बैठीं
जलने दो खाली मकानों को यह कौन से घरोंदे हैं
थोड़ी सी हवा क्या चली, हिला बैठे करीबी रिश्तों को
बहकने दो औलादों को, यह कौन सी तुम्हारी हैं,
ज़रा फूटी नादां जवानी क्या , बरसों की परवरिश भुला बैठेभटकने दो तौकीलौं को, यह जिंदा हैं मज्हबो पर
थोड़ी सी मुश्किलों ने बदल डाला काफिरों में
मरने दो इनसानो को, यह कौन से इंसान हैं,
जब करम की जरूरत थी, फ़रोक्त आये इंसानियत को
उजड़ने दो शमशानों को यह कौन से सुथरे हैं
सलामत बेईमानों की हैं लाशें, साथ सुलाते हैं शहीदों को
भुला दो सभी हकीकतों को जो दर्द देती हैं,
कशमकश के घेरे से कभी दर्द कम नहीं होगा जी लो जिंदगी एक बार बेपरवाह हो कर
फिर मौत भी आये कोई गम नहीं होगा
द्वारा
स्नील शेखर