गुरुवार, 28 जून 2012

सपनो की पुडिया





बगल में छुपा कर सपनो की पुडिया
मंजिल नहीं मिलती
रुपयों की दूकान पर सासों को गिरवी रख
जिंदगी नहीं मिलती

प्रेमी चातक के गगन घूरने से
प्रेम की बारिश नहीं होती
बहा आखों से गर्म नमकीन पानी हिमालय के सिने की
बर्फ नहीं पिघलती


नींद भरी आँखों से तारे गिन
काली रात नहीं ढलती
गंगाधर विश्राम कर मानव
मुक्ति नहीं मिलती

गिरा रंग की पपड़ियाँ
इमारतें हसीं नहीं बनती
काली जबाँ अजाँ पढने से
उसकी रहमत नहीं मिलती


द्वारा स्नील
   

4 टिप्‍पणियां:

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बगल में छुपा कर सपनो की पुडिया
मंजिल नहीं मिलती
रुपयों की दूकान पर सासों को गिरवी रख
जिंदगी नहीं मिलती
bahut sundar...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह..
गिरा रंग की पपड़ियाँ
इमारतें हसीं नहीं बनती
काली जबाँ अजाँ पढने से
उसकी रहमत नहीं मिलती

सुन्दर...
अनु

Amrita Tanmay ने कहा…

बेहद खुबसूरत ...

Sniel Shekhar ने कहा…

सभी का धन्यवाद